लॉकडाउन: गेहूं खरीद में बिचौलियों की चांदी
जन एक्सप्रेस, सुनहरा/शिशिर शुक्ला
।। शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि अगर गेहूं क्रय केंद्रों पर केंद्र प्रभारी कुछ गड़बड़ी करते हैं, तो एसडीएम मामले की जांच करेंगे 1925 रूपये की जगह 1700 में आढ़तियों को बेचने पर मजबूर हैं किसान।।
पलियाकलां खीरी। कोरोना संकट में दानव का रूप धर आये गेहूं खरीद के बिचौलियेप पलियातहसील में इन दिनों गेहूं क्रय केंद्रों पर तमाम अवव्यस्थाओं के साथ ही गेहूं की खरीद जारी हैं। कहीं बोरों की कमी है तो कहीं बिचौलियों की चांदी हो रही है। सरकार को प्रतिदिन केंद्र प्रभारी बिचौलियों से मिल कर अच्छा खासा चूना लगा रहें हैं। पलिया तहसील के थारू जनजाति इलाके में वैसे तो कई केंद्र हैं लेकिन सभी अपने अपने तरीकों से किसानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यहां फोन नेटवर्क न होने की वजह से आंन लाइन टोकेन व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। इस बावत बिरिया निवासी राम अवतार राना का कहना है कि "जान जोख़िम में डालकर फसल तैयार किया था, अब कम दाम में बिचौलियों को बेचना पड़ रहा हैं। "हमारा गेहूं आजतक सरकारी क्रय केंद्रों पर नहीं तौला गया। केंद्र प्रभारी कहते हैं कि गेंहू अभी सूखा नही है, इसमें नमी ज़्यादा है, पहले पंजीकरण कराओ, टोकन जनरेट कराओ, उसके बाद जमीन सत्यापन करो तब तौल होगी। मजबूरन हमें थक हार कर बिचौलियों के हाथों ही औने-पौने दामों पर अपना गेहूं बेचना पड़ता है," इतना कहते-कहते किसान की आंखें नम हो जाती हैं।वहीं पिपरौला गांव के किसान प्रेम राना ने अपने एक एकड़ के खेत मे गेंहू बोया था। उनका खेत जंगल के पास है, इसलिए फसल बोने से लेकर उगाने तक उन्हें तमाम तरह के खतरों को उठाना पड़ा। पिछले पंद्रह दिनों से उनका गेंहू घर में ही पड़ा हुआ है, क्योंकि सरकारी क्रय केंद्र पर खरीदारी नहीं हुई है।पलिया तहसील के मकनपुर के प्रगतिशील किसान बिक्की गुप्ता बताते है कि किसानों की बिचवलियों को गेहूं बेचने की जो मजबूरी है उसके पीछे के कारणों को समझना बहुत जरूरी है चूकिं बजाज हिन्दुस्तान ने गन्ना किसानों को उसका पेमेंट नही दिया है किसानों की जेबें खाली है इसी का फायदा उठा कर दलाल सस्ते में गेहूं खरीद रहे हैं और किसान मजबूरी में बेंच भी रहें हैं। सरकार द्वारा 1925 का सरकारी रेट तय किया गया है लेकिन तुलाई, मनमाना करदा, मजदूरी भाङा के नाम पर किसानों का शोषण हो रहा है। इसी सबका फायदा आंढती उठा रहे है वह 1700-1800 के बीच में आढती नगद खरीद रहे हैं।



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